Wednesday 17 November 2010

tumhaari dosti

तुम्हारी दोस्ती के साए में बहुत जी लिए हम
अब अगर खुद से मुकर जायो तो  कोई बात नहीं
ज़िन्दगी के किसी मकाम पे कभी तो मिलेंगे
तब अगर अजनबी बन जायो तो कोई बात नहीं

याद उनको किया करते हैं जो अपने हो कभी
जुस्तुजू उनकी होती है जो अपने हो कभी
तुमसे नफरत नहीं शिकवा भी न गिला है कोई
हम यह भूले थे तुम इंसान हो खुदा तो नहीं

हमज़बा बन के कभी आये थे मेरे लिए तुम
मेरे जज़्बात की कीमत समझते थे कभी तुम
मोहब्बत से अभी वाकिफ नहीं है लोग कितने
तुम भी अब उनमे गर शामिल हो तो कोई बात नहीं

तुम्हारी दोस्ती के साए में बहुत जी लिए हम

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