लुत्फ़ लेतें हैं ज़िन्दगी का तन्हाइयों को आघोष में लेकर
महफिलें सजाते हैं वीरानों में परछाइयों को दोस्त बनाकर
कोई रहनुमां नहीं ना सही ज़िन्दगी इससे मुक्कमल तो नहीं होती
ख्वाब टूटते हैं अगर तो टूटें हम जीते हैं नए ख़्वाबों के दम पर
मुहब्बत सिर्फ बज्मे यार का अफसाना नहीं
रिश्ते और भी हैं ज़िन्दगी बसर करने को
आशियाना बनाया था ख्वाब में
टूट गया चोलो अच्छा हुआ
हर मोड़ पे नये आशियाने की धुन में रहते है
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