Wednesday 17 November 2010

Zindagi

लुत्फ़ लेतें हैं ज़िन्दगी का तन्हाइयों को आघोष में लेकर
 महफिलें सजाते हैं वीरानों में परछाइयों को दोस्त बनाकर

कोई रहनुमां नहीं ना सही ज़िन्दगी इससे मुक्कमल तो नहीं होती
ख्वाब टूटते हैं अगर तो टूटें हम जीते हैं नए ख़्वाबों के दम पर

मुहब्बत सिर्फ बज्मे यार का अफसाना नहीं
रिश्ते और भी हैं ज़िन्दगी बसर करने को

आशियाना बनाया था ख्वाब में
टूट गया चोलो अच्छा हुआ
हर मोड़ पे नये आशियाने की धुन में रहते है

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